गणेश अवतार विशेष
भगवान श्री गणेश के आठ अवतारों का संक्षिप्त वर्णन (गणेश चतुर्थी विशेष)
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खास चतुर्थी भाद्र मास की , शुक्ल पक्ष की बेला है।
श्री गणेश का जन्म दिवस है,जो रिद्धि सिद्दी का छैला है।
मात पार्वती ने गणेश को ,तनिक मैल से गात दिया।
और जन्मते ही रखवाली का ,अभिन्न काम अंजाम दिया।
पहरा देते समय वहां पर ,महादेव जब आ ही गये।
आप कौन और किधर से आये, लगते हो मुझे नए नये।
मेरे घर मे मुझको टोके, अचरज खा गए त्रिपुरारी।
बोले हट छोड़ मार्ग तू ,कौन है तू जो करे रखवारी।
बात बढ़ी ओर महादेव ने ,हल्का एक प्रहार किया।
बालक का जो सर था उसको,धड़ से शीघ्र उतार दिया।
पार्वती को पता चला तो,आग बबूला हो बैठी।
महादेव से मूँह को मोड़ा, और फिरे ऐंठी ऐंठी।
चला पता जब देवलोक में ,दौड़े दौड़े सब आये।
जैसे तैसे ऐसे वेसे ,सब करे जतन और समझाये।
आखिर मैं यही हुआ तय फिर , लाल मेरा फिर ज़िंदा हो।
सबसे ज्यादा हो ताकत भी,पूजित सबसे आइंदा हो।
सुनकर महादेव ने श्री विष्णु को,काम यह तत्काल दिया।
जाकर लाओ कोई भी सिर, विष्णु ने फौरन मान लिया।
सबसे पहले मिला विष्णु को , एक गजबालक नन्हा सा।
उसे मारकर ही ले आये विष्णु वो सिर नन्हा सा।
किया व्यवस्तिथ गज के सिर को,और प्राण संचार किये।
इस प्रकार ही श्री गणेश ,गजवदन अवतार हुए।
प्रथम देव का प्रथम रूप ,फिर नाम गजानन कहलाया।
हुए अष्ठ अवतार जो उनके ,प्रथम इसे ही पुजवाया।
1★गजानन★
श्रीगणेश का यह रूप सांख्यब्रह्म का धारक है।
सिर पर गज का आनन है उनका वाहन मूषक है।
कहते है शुक्र शिष्य लोमासुर ने ,वरदान गज़ब का चाहा था।
निर्भय होकर सब लोक में घुमू, यह शंकर से पाया था।
मिला उसे तथास्तु तो ,आगे उसकी चढ़ आई।
करो रिक्त कैलाश को शंकर, इतनी हिम्मत बड़ आई।
तब श्री गणेश ने उसको, मृत्युमुख में पहुंचाया था।
कहते है इस कारण ही , यह गज का आनन पाया था।
2 *★विघ्ग्रराज★ *
चलो बताऊं अब गणेश के, कौन कौन अवतार हुए।
विष्णु ब्रह्म के वाचक*विघ्ग्रराज* ,
शेषवाहन पर सवार हुए।
जब ममतासुर ने कर प्रसन्न ,इनसे ही वरदान लिया।
ले आसरा इसी बात का,सकल ब्रम्हांड परेशान किया।
करी देवताओं ने विनती ,फिर विघ्गरराज से जाकर।
ममतासुर को मार गिराया ,इनने गुस्से में आकर।
3★धूम्रवर्ण★
अजेय अमर अहंतासुर से सम्पूर्ण लोक में हाहाकार मचा।
श्री गणेश ने धूम्रवर्ण बन ,तब शिवब्रह्म का स्वरूप रचा।
नारद ने समझाया बहुविधि पर अहंतासुर
था अभिमानी।
अपने अहम वरदान के कारण ,उसने बात नही मानी।
तब श्री गणेश ने उससे मिलकर भीषण सा संग्राम किया।
ज्ञान हुआ फिर अभिमानी को ,शरणागत हो प्रणाम किया।
4★ विकट स्वरूप*
श्री गणेश का विकट स्वरूप सौरब्रह्म का धारक है।
जिसमें वाहन इनका मयूर ,और कामासुर का तारक है।
कामासुर ने कीन्ह तपस्या ,अजय अमर वरदान लिया।
इसी बात के चलते चलते ,पूरा त्रिलोक परेशान किया।
तब गणेश से देवलोक ने ,अनुनय और गुहार करी।
श्री गणेश ने विघ्नहरण को ,उनकी आर्त पुकार सुनी।
करी चढ़ाई कामासुर पर , जबरदस्त हुँकार किया।
इसे देख कर कामासुर ने ,जमकर गदा प्रहार किया।
मगर गणेश ने पटक गदा को ,पृथ्वी लोक पर डार दिया।
मर तो सकता नही दुष्ट था,सो उसको लाचार किया।
शरणागत हो कामासुर ने ,श्री गणेश का ध्यान किया।
विकट रूप श्री गणपति का यह,सारे जग ने मान दिया।
5★ लम्बोदर★
लम्बोदर अवतार प्रभु का,शक्ति ब्रह्म का धारक है।
यह सत्स्वरूप है मूषकपति का,क्रोधासुर उद्धारक है।
क्रोधासुर ने सूर्यदेव को ,भक्ति से खुश कर डाला।
अजर अमर का वर लेकर ,ब्रह्मांड तंग फिर कर डाला।
लम्बोदर ने क्रोधासुर से ,फिर भीषण संग्राम किया।
कर शरणागत इसको भी ,रहने को अपना धाम दिया।
6★महोदर ★
ज्ञान ब्रह्म का यह स्वरूप भी, मोहासुर के कारण है।
जिसका सूरज की भक्ति से , अजर अमरतव का धारण है।
सकल लोक को त्रस्त किया जब श्री विष्णु ने समझाया।
नाम सुना जब ★महोदर★ का तो ,मोहासुर भी थर्राया।
गया शरण फिर मोहासुर , मूषक वाहन धारी के।
नाम महा उदर भी जुड़ गया, श्री गणेश जगतारी के।
7★एकदन्त★
श्री गणेश का यह स्वरूप ,देहि ब्रह्म का धारक है।
च्यवन सुत और शुक्र शिष्य, मदासुर का मद मारक है।
जिसने माँ भगवती के वर से , त्रिपुरारी शिव को हरा दिया।
अपने छल बल दल से जिसने,सकल लोक को डरा दिया।
बंधा देखकर शम्भू पिता को,शम्भू सुत ने संज्ञान लिया।
मन्द बुध्दि मय मदासुर को , अपना पूरा ज्ञान दिया।
छोड़ शम्भु को जी जीवन को ,भरपूर उसे समझाया।
पर मद में आकर उसने प्रभु पर, अपना धनु धरना चाहा।
पर बाण चढ़ाना मुश्किल था,श्री गणेश की माया से।
आखिर में हो परेशान वो ,हार गया शिव जाया से।
अभय वाला वर देकर फिर, पाताल लोक में पहुंचाया।
देहि स्वरूप के कारण प्रभु का,नाम एकदन्त कहलाया।
8★*वक्रतुण्ड*★
वक्रतुंड अवतार प्रभु का,ब्रह्म रूप का धारक है।
ब्रह्मरूप से सकल शरीरों में ,आने जाने में व्यापक है।
वक्रतुंड ने वाहन देखो,मूषक नही शेर लिया।
मत्सरासुर को इसमें गणेश ने ,घायल करके ढेर किया।
मर तो सकता नही कभी था,अजर अमर का वर जो था।
शिव शंकर को पाशब्द्द कर ,बना दैत्य राज मत्ससुर था।
इंद्र प्रमाद की पैदाइश थी ,इस मतसासुर दानव की।
त्राय त्राय जिससे कर बैठी ,देवलोक संग धरा मानव की।
तब श्री गणेश के दो ही गणो ने ,अहम असुर का चूर किया।
पाताल लोक में भेज दैत्य को ,सकल ब्रह्म से दूर किया।
क्रम तो बतला नहीं पाऊंगा ,इस पर बहुत विचार किया।
परन्तु यह आठ रूप है जिनका मैंने विस्तार किया।
धूम्रवर्ण ,विघ्ग्रराज ,विकट,लम्बोदर ,
गजानन,महोदर,एकदन्त ,वक्रतुण्ड
कलम घिसाई
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