गज़ल
खामोशी पढ़ना पाए,नादान वो लबो की,
देकर के क्यो चले हैं सौगात वो गमो की।।
हमदर्द बन के देखो,खंजर लिए है बैठे,
हैं बात ही निराली ये,देश के ठगो की।
तुम कोशिशें तो करना, बस हार के ना बैठो,
होती यहाँ परीक्षा ,,,मेरे यार हौसलों की।।
कहते थे हमसे देखो थोड़ा सा तुम संभलना
उनको पड़ी जरूरत,देखो नसीहतों की।।
उड़ कर के आए हैं, ये अब आसरा हैं मांगे
आओ करे हिफाज़त,अब प्यार पंछियो की।
जो भी मिला हैं तुमको,उसको संभाले रखना।
देता सजा यहाँ पर ,,,,भगवान गलतियों की।।
झूठे किए है वादे,उम्मीदें भी हैं तोड़ी।
खोली हैं पोल देखो,यहाँ आज कायरों की।
©®ममता गुप्ता✍️
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