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23 Jan 2024 · 1 min read

गज़ल

जी भर के कल रात मुनगुनाया मुझसे ।
अब तक जो था हाल छुपाया मुझसे ।।

शिकवा हमको भी हुआ खूब अपनी तन्हाई पर।
मयखाने से आकर जो वह बतियाया मुससे ।।

क्या क्या न दी दलीलें उसने हमराज़ होने की ।
मेरा ही किया कत्ल और छुपाया मुझसे ।।

‘गर न था मंजूर तुझे मेरा इश्क हकीकी ।
क्यों अपनी रूह को मिलाया मुझसे ।।

स्वच्छंद को मिला है तेरे अक्स में खुदा
कमबख्त तूने मेरा कफ़न क्यों चुराया मुझसे।

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