गज़ल
जी भर के कल रात मुनगुनाया मुझसे ।
अब तक जो था हाल छुपाया मुझसे ।।
शिकवा हमको भी हुआ खूब अपनी तन्हाई पर।
मयखाने से आकर जो वह बतियाया मुससे ।।
क्या क्या न दी दलीलें उसने हमराज़ होने की ।
मेरा ही किया कत्ल और छुपाया मुझसे ।।
‘गर न था मंजूर तुझे मेरा इश्क हकीकी ।
क्यों अपनी रूह को मिलाया मुझसे ।।
स्वच्छंद को मिला है तेरे अक्स में खुदा
कमबख्त तूने मेरा कफ़न क्यों चुराया मुझसे।