गज़ल
सदियों का चेहरा आज फिर बदलना होगा।
साहिल छोड़ तुमको गहरे में उतरना होगा।।
तुम लाख देखते रहो आकाश के परिंदों को
पंख बिना परवाज तो बस इक सपना होगा।।
बरगद बन पाखियों का वह बनेगा बसेरा ।
बीज में सोए अंकुर ने भला कब यह सोचा होगा।।
दो गुनी रफ्तार से फिर चली होगी नदिया ।
चट्टानों ने जब भी उसका रास्ता रोका होगा ।।
आंगन के बीच बनी आज यह दीवार तोड़ दें ।
न जाने फिर कब यह समां यह मंज़र होगा।।
बेरहमी से तुमने जिस को कर दिया यतीम।
बद्जात वह भी तो तेरी रूह का हिस्सा होगा।।
जिसने चलाया खंजर अपनों की महफिल में,
‘स्वच्छंद’ वह दोस्त भी तेरा कोई अपना होगा।।