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3 Sep 2022 · 1 min read

गज़ल

उल्फ़त की कोशिशें मेरी नाकाम हो गई ।
पर मुफ़्त में ये ज़िन्दगी बदनाम हो गई।।

जो बात राज़ राज़ थी हम तुम के दरमियाँ
अफ़सोस की है बात वही आम हो गई।।

वादा हुजूर कर गये आए न देर तक,
रस्ते को देख-देख मेरी शाम हो गई।।

अब तो उसूल कोई नहीं शख़्स का बचा,
ग़ैरत न जाने कब कहाँ नीलाम हो गई।।

अहसान दोस्तों ने भी मुझपे किया है खूब,
के दुश्मनी मेरे लिए आराम हो गई।

छाता नशा है रोज इन्हें देख देखकर
आँखें ये तेरी मयकदे का जाम हो गई।।

urvashiiiiiii ✍️✍️

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 88 Views
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