गज़ल (इंसानियत)
जमीं को क्यों उजाड़ा जा रहा है।
अंधेरा कायम उजाला जा रहा है।।
सियासी दांव पेंच हैं ये खालिस।
हिंदू मुस्लिम क्यों लड़ा जा रहा है।।
इंसानियत का तकाज़ा बाकी है।
रंग मुस्सलसल बदला जा रहा है।।
फैसला होगा मुकादम के सामने।
मुकर्रर तारीख को सज़ा पा रहा है।।
तामील क्यों हो पैगाम ए मुहब्बत।
तालीम में घिन पढ़ाया जा रहा है।।
अंधेरा काफूर हों आसमां तक।
चिराग फिर उछाला जा रहा है।।
नुमायां दुनियां को फिर करने।
इक फरिश्ता चला आ रहा है।।
तेरे आमाल तेरी गवाही देंगे।
क्या लेके आया कैसे जा रहा है।
उमेश मेहरा
गाडरवारा ( एम पी)
9479611151