गजल_कौन अब इस जमीन पर खून से लिखेगा गजल
कौन अब इस जमीन पर खून से लिखेगा गजल।
वह गया कलम छोड़ रोटी की दौड़ में निकल।
जितनी उगती है कंटीली झाड़ियाँ उगने दो यहाँ।
सूरज को गलबाँही दिए कोई भी आयेगा निकल।
आसमां और झुके और झुके तारा टूटेगा नहीं।
तुम नहीं बदलोगे जो कुछ नहीं पाएगा बदल।
बहुत कुछ तय था इस गाँव की नियति के लिए।
शहरी मछेरे पर आ गए घरों से निकल।
परिधि पे रेंग रही है चींटियों का काफिला।
और हथियों के झुंड रहे कदली वनों से निकल।
——————————————————–
अरुण कुमार प्रसाद