गजल
दोस सिस्टम के दिहल बेकार बा।
कर्म से भागल समझ लीं हार बा।१
सब क आपन पूत प्यारा हो गइल,
आदमी देखीं बड़ा लाचार बा।२
के करत बा का इ परदा डाल के,
खुद सुधर गइला क अब दरकार बा।३
चार दिन के जिंदगी में हाय हाय!
का भइल कइसन कहऽ टकरार बा?४
मोह माया के सजी बंधन हवे,
ना त कइसन भ्रात कइसन यार बा।५
सब खड़ा हऽ मौत के दहलीज पर,
जे भजल श्रीराम के ऊ पार बा।६
निज उदर सब जानवर भरते हवें,
खुद क खातिर जे जियल ऊ भार बा।७
लऽ गइल इज्जत सरे बाजार में,
सब बने भाई पिता भरतार बा।८
स्वार्थ बस घोरल जहर में जिंदगी,
हर कदम पर देख लीं बस खार बा।९
फुलझड़ी के देखि सब खुश हो रहल,
सब क लागत बा बड़ी उजियार बा।१०
‘सूर्य’ कहना बस इहे अब मानि लऽ,
जिंदगी जी लऽ न तऽ ई भार बा।११
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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