गजल
अगर लहजा तेरा,दो पल को मीठा हो गया होता।
दिलों में जो कदूरत है, मदावा हो गया होता।
❤️
जवाबन उसके लहजे में ज़ुबां हम खोल सकते थे।
हमे भी तैश आ जाता तो झगड़ा हो गया होता।
❤️
न जाने किस लिए वो हर घड़ी ग़मगीन रहता है।
उसे जिसकी भी चाहत थी,उसी का हो गया होता।
❤️
मुकम्मल हो गई होती कहानी यह मोहब्बत की।
अधूरा लफ्ज़,तुम मिलते तो पूरा हो गया होता।
❤️
तू पारस है तेरी खूबी,ज़माना क्यों नही समझा।
अगर तू लोहा छू लेता तो सोना हो गया होता।
❤️
‘सगीर’ उसके बिना ठहरा हुवा हो वक्त भी जैसे।
अगर वो शाम को आता सवेरा हो गया होता।