गजल
भावनाओं को छुपाना आ गया,
बे-जुबानों का ज़माना आ गया।
शाम से ठण्डी हवा चलने लगी,
सर्द मौसम भी सुहाना आ गया।
नाविकों!तूफ़ां मचलकर थम गया,
सामने देखो… मुहाना आ गया ।
चूमकर हमने खुशी से लब छुये,
आपको पलकें झुकाना आ गया।
जीत की पहली ख़बर वो दे गया,
और उनको मुस्कुराना आ गया।
आप भी करने लगे चमचागिरी !
आपको भी मार खाना आ गया।
बात वो करते नहीं दिल से सहज,
फ़ासले उनको बनाना आ गया।
(जगदीश शर्मा सहज)