गजल
किसी जरदार की चौखट पर ना दस्तार गिरी है।
मेरे अदब की ना अभी मैअयार गिरी है।
महंगा है मेरा इश्क तेरे हुस्न से अब भी।
इतनी भी नहीं कीमते बाजार गिरी है।
हमने तो निहत्थों पर चलाए नहीं खंजर।
हाथ से दुश्मन के जब तलवार गिरी है
।
रिश्तो के तलातुम में उलझती रही दुनिया।
कश्ती है सलामत मगर पतवार गिरी है।
रिश्तों में हलावत है न चाहत न वफा है।
नफरत की आग इस तरफ़,उस पार गिरी है।