गजल
आओ खुद को सम्हाल लेते हैं।
हंस के नतीजे निकाल लेते हैं
जिन्दगी होश में रहे तो अच्छा,
बेकार में क्यों बवाल लेते हैं।
उनकी हर बात अंधेरों वाली,
हम उजालों की मशाल लेते हैं।
समझ में शायद उनको न आए,
चावल पे सब क्यों दाल लेते हैं।
–“प्यासा”