गजब गांव
यह गांव सभी नक्कटा का है।
रहते, सब छोटका बड़का है ।।
वैसे यह बड़ा बहुत विभूषित है।
पर चारित्रिक रूप से दूषित है।।
व्यभिचार यहां घर घर में है।
नहीं इतना किसी शहर में है।।
यह लग्गू भग्गू का निर्माता है।
गुंडों का टाट चाटना भाता है।।
जीवन तो मेहनत कस से है।
यहां जीवन उसका कर्कश है।
कुछ जीवित है मेहनती लोग।
जिससे पोषित है नकट्टा लोग।।
गीता रामायण ग्रंथो के ज्ञानी है।
रावण से बड़ बड़ अभिमानी है।।
ये अपनों से इज्जत मांगते है।
मां बाप से सेवा चाहते है ।।
फिर रोता रोता गांव गया।
हे ईश्वर मुझ पर करो दया।।
मुझे मुक्त करो इस दुष्टों से।
देदो छुटकारा इन कष्टों से।।
ईश्वर बोले धारो धैर्य हृदय।
आने वाला है उचित समय।।
पाओगे छुटकारा तुम इन वृद्ध वटों से।
इसी तरह मुक्ति पाओगे नक्कटों से।।
“सभी व्यभिचार से पीड़ित गांव को समर्पित”
जय हिंद, जय भारत