गंगोदक सवैया
गंगोदक सवैया(ऽ।ऽ रगण×8)
मातु हंसासना पाणि वीणा सुनो
भक्त तेरा पुकारे तुझे शारदे!
ज्ञान दे दो मुझे मेट अज्ञानता
प्रार्थना है यही एक हे शारदे!
छांदसी काव्य की साधना के लिए
भाव दो लेखनी को नए शारदे!
शब्द हों सारथी छंद घोड़े बनें
लोक पीड़ा सवारी करे शारदे!!
डॉ.बिपिन पाण्डेय