गंगा
गीत
शीर्षक- “गंगा”
भगीरथ अवनि से जा पहुँचे, स्वर्गलोक के द्वार।
देवभूमि से गंगा लाए, तारन को परिवार।।
सुत दिलीप का देख कठिन प्रण, देव हुए तैयार।
तीव्र वेग गंगा का अविरल, बना विकट आधार।।
शिव ने तप से हर्षित होकर, जटा समाई धार।
देवभूमि से गंगा लाए, तारन को परिवार।।
पतित पावनी भू पर उतरी, जगत किया उद्धार।
कर निनाद हिमगिरि से बहती, हिमसागर के पार।।
निर्मल, शीतल, वत्सल गंगा, देती सबको तार।
देवभूमि से गंगा लाए, तारन को परिवार।।
मृदुल भाव से गिरती-उठती, करे शृंखला पार।
अंचल धोकर वसुधा का यह, करती नव शृंगार।।
हरियाली वसुधा को देती, जीवन का यह सार।
देवभूमि से गंगा लाए, तारन को परिवार।।
प्राणी जल पीकर सुख पाते,करती नित उपकार।
पापी जन मल धोकर करते, दूषित जल सौ बार।।
याद रखो सुरसरि है पावन, देवलोक उपहार।
देवभूमि से गंगा लाए, तारन को परिवार।।
दूर प्रदूषण कर गंगा से, त्यागो मलिन विचार।
दे सम्मान धरा पर इसको, भूल करो स्वीकार।।
बहे स्वच्छ अलिरल यह धारा, पूज करो सत्कार।
देवभूमि से गंगा लाए, तारन को परिवार।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)