*गंगा स्नान (घनाक्षरी)*
गंगा स्नान (घनाक्षरी)
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जिसकी न कहीं उपमा जग में
जल गंगा का वरदान रहा
जिसकी छवि देख के मुग्ध जगत
जिसके कारण अभिमान रहा
जिसके पूजन से पाप मिटे
गुण आयुर्वेद बखान रहा
वह खेद रही न नदी पावन
मुश्किल से जहाँ स्नान रहा
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा रामपुर उत्तर प्रदेश
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