गंगा- सेवा के दस दिन..पांचवां दिन- (गुरुवार)
गंगा- सेवा के दस दिन
पांचवां दिन- गुरुवार 20जून 2024
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21. गंगाजल की स्वच्छता हम सब का कर्तव्य। दिव्य स्वयं ही है,इसे चलो बनाएं भव्य।।
चलो बनाएं भव्य शांतिदायिनि जलधारा।
नारायण ने इसे धरा पर स्वयं उतारा।।
इस धारा में बह जाते जीवन के छल बल।
एक बूंद भी मुख में जो पहुंचे गंगाजल।।
22.धारा धरती पर गिरी,मिला ईश-वरदान।
नित्य नदी तट हो रहे,ज्ञान ध्यान स्नान।।
ज्ञान ध्यान स्नान,तपस्या होती हर पल।
ब्रह्म सुधा है, मानव को पावन गंगा जल।।
किन्तु प्रदूषण बना रहा दुर्गंध पिटारा।
फिर भी संजीवनी, सदा गंगा की धारा।।
23.पावन गंगा धार को, दें उसका सम्मान।
गंगा भारत के लिए, देवों का वरदान।।
देवों का वरदान त्रितापों को हर लेती।
धर्म अर्थ अरु काम मोक्ष,चारों फल देती।।
देव नदी के तट पर बीते सारा जीवन।
जन्म भाग्यशाली,और अंतिम पल भी पावन।।
24.शंकर जी के शीश पर जटा जूट घनघोर।
इन्हीं जटाओं में थमा, गंगा मां का शोर।।
गंगा मां का शोर, जटाओं में जा अटकीं।
जीव जगत उद्धार हेतु फिर वन-वन भटकीं।।
स्वार्थ मुक्त जो जिए,उसे जग में किसका डर?
इस सद्गुण से शीश मध्य रखते शिव शंकर।।
25.गंगा में मत डालिए,दूषित खाद्य पदार्थ।
स्वार्थ त्याग कर कीजिए,गंगा हित परमार्थ।।
गंगा हित परमार्थ,इसे फिर स्वच्छ बनाएं।
आड़ धर्म की लेकर,कचरा नहीं बढ़ाएं।।
गंगा का, लें नाम,करें नेता हंगामे।
केवल बढ़ता शोर, जहर घुलता गंगा में।।
(……अशेष)💐💐