गंगा पर हाइकु
मोक्षदायिनी
सतत प्रवाहिणी
तू मंदाकिनी
ओ त्रिपथगा
कल कल निनाद
शुचि अंबुद
हे देवनदी
प्रतीक आस्था की
देती संत्राण
अलकनंदा
जीवन प्रदायिका
पूज्या मातु
ओ भगीरथी
है पतित पावनी
फल तप का
हे विष्नुपगा
शिव जटा वासिनी
पुण्य सलिला
सुरसरिता
मानव प्रियकांक्षी
सदा प्रणम्य
नद्य संप्लुत
अवशिष्ट संग्रह
अति दुर्नम्य
हिम तनया
कल्मष निवारणी
निर्मल गंगे
जाह्नवी पथ
वसुधा परिक्षय
है परिज्ञेय
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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