गंगनाँगना छंद विधान ( सउदाहरण )
गगनाँगना छंद [सम मात्रिक]
विधान-25 मात्रा,16,9 पर यति,
चरणांत – 212 (रगड़)
बीते पूरी शाम सुहानी , आगे रात भी |
इसके आगे फिर आएगा , नया प्रभात ही ||
यहाँ सभी नव छंद रचेगें, फिर विश्वास से |
रीति पुरानी सदा निभाएँ , हम सब आस से ||
मिले कर्म फल पूरा सबको , इतना मानिए |
जो भी बोता वह फल उगता , यह भी जानिए ||
रागी कभी न जानेगा यह ,क्या सुख त्याग का |
उसका हरदम बोल रहेगा , अपने राग का ||
मरहम हो सकती है प्यारे , बोली आपकी |
परछाई भी दूर रहेगी , जग के ताप की ||
पुष्प खिला सकते बंजर पर , निज को जानिए |
बोल आपके मीठे हों दो , इतना मानिए ||
काम सदा मरहम का करती , अच्छी कामना |
सदा महकती फूलों जैसी , मन की भावना ||
मीठी बोली निर्धन जाने , देना जानता |
अपना जैसा सरल हृदय वह , सबका मानता ||
बैल बना देखा है मानव , ढोता भार को |
अपने हित में लगा रहे वह , भूले प्यार को ||
जोड़ तोड़ में लगा रहे वह , किसी करार में |
नगद जोड़ता पर देखा है , रहे उधार में ||
जहाँ हौसले तूफानों को , जब संदेश हों |
करें सामना संकट का हम ,यह परिवेश हों ||
सदा सफलता करे समर्पण , निज मुस्कान से |
वीर साहसी उपमा देती , तुमको शान से ||
सुभाष सिंघई