ख्वाहिश
ख्वाहिश
ख्वाहिश तो यह है, कि
काश कोई ख्वाहिश ही ना होती।
दिन का चैन और रात की
नींद तो बरक़रार रहती ।।
उम्रे गुज़र जाती है,
ख्वाहिशों के मकड़जाल में।
आख़िर में ख्वाहिशें
कहां है जो पूरी होती ।।
– ओमप्रकाश भार्गव,
पिपरिया