ख्वाहिश नहीं
हसरतें नहीं जिंदगी में कोई
ख्वाहीशें भी बैजां सी हो गयी
ख्वाब अब आतें ही नहीं नींदों में
नींदें तो जैसे रात से दुर हो चली
जानें क्यों काट रहा हुँ
तुझें जी जी कर ऐ जिंदगी
छोड़ कर तुझें जाने की हिम्मत भी नहीं
तु ही चली जा जिस्म से ऐ रूह मेरी
मेरे जीने की अब कोई ख्वाहिश नहीं।