ख्वाबों के रेल में
ख्वाबों के रेल में
मन बहुत अकेला है।
चलता है वो जिस डगर
सब ओर भीड़ का मेला है।
सोचता है मन कि कोई तो मिल जाए
इस भीड़ भरी दुनियां में जो
ख्वाब के इस मंजिल तक कि डगर में
सारथी बन जीवन में हर पल मेरे साथ चले।
जब भी विचलित हो जाऊँ मैं अपने पथ पर
हाथ थाम मेरे साथ चले।
जहाँ समझ न आए कोई रास्ता
वह मेरे मार्ग का चुनाव करे।