ख्वाबों की सपनें
!! ख्वाबों की सपनें !!
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प्रत्येक दिन की तरह आज भी मैं सुबह अपनी डेरा से कॉलेज के लिए निकल चुका था। मेरा कॉलेज मेरे डेरा से लगभग दो किलोमीटर के आसपास में था और इतना मैं रोज पैदल चलकर हमेशा सोनपुर डायट कॉलेज में पहुंचता था। जा ही रहा था, आधे रास्ते तक पहुंचा था। तब तक हाईवे से एक चार पहिया वाहन दौड़ती हुई मेरे पास पहुंची। जिसमें चार लोग हटा-कटा शरीर वाले बंदूक के साथ थे। उन लोगों ने मुझे सोचने समझने की कोई मौका ही नहीं दिया और नहीं मुझे से कुछ पूछा और मुझे उठा करके गाड़ी में बैठा लिया और फिर जिस रफ्तार से गाड़ी आई थी, उसी रफ्तार से गाड़ी को आगे हाईवे पर दौड़ा दिया। पता नहीं चला क्यों मुझे उठाया और अंदर में मुझे बैठाया। कुछ पूछा भी नहीं। हम तो भौंचक रह गए। उन लोगों के चेहरे की तरफ देखते रहें, वे लोग भी चुपचाप मुझे बैठाया और चलते रहे। कुछ बोल चाल ही नहीं रहे थे और नहीं मेरे मुख से कोई ध्वनि निकल रही थी क्योंकि वे लोग हथियार बंद हटा-कटा शरीर वाले थे। कहे तो क्या कहें? किससे कहें?
ऐसी घटना मेरे साथ पहली बार हुई। पता नहीं मुझमें वे लोग क्या देखें? क्या नहीं देखें? किस उद्देश्य से उठाएं? किस उद्देश्य से नहीं? यही मैं सोच रहा था, तब तक वे लोग मुझे एक बड़े से मैरेज हॉल में ले गए। उस मैरिज हॉल की दरवाजा खुलें तो देख रहे हैं कि बहुत सारे लोग नए-नए कपड़े पहने हुए, सजे धजे हुए लोग एकत्रित हुए हैं। महिलाएं सिंगार की हुई हैं। गाना चल रहा है, जैसे कोई शादी का माहौल हो लेकिन यह लोग मुझे एक कमरे में ले जाकर के बंद कर दिए। कुछ देर के बाद उस कमरे में देख रहे हैं तो एक मेकअप मैन आता है और मेरा मेकअप करना शुरु कर देता है। साथ ही दूल्हे से संबंधित सारे कपड़े मुझे पहनाता है, जैसे फिल्म के हीरो को सजाया जाता है और मात्र कुछ मिनट के अंदर ही मुझे तैयार कर दिया।
कुछ देर के लिए मैं सोचता रहा कि ये लोग मुझे दूल्हा क्यों बना रहे हैं। फिर मैंने सोचा शायद कोई फिल्म की शूटिंग चल रही होगी, उसके लिए हो सकता है। फिर मैंने सोचा इतनी बड़ी फिल्म शूटिंग के लिए मेरा यहां कौन सा काम? बड़े-बड़े हीरो और कलाकार तो लाइन में लगे होते हैं। तभी तक वह लोग शादी के मंडप में बैठा दिए। तब तक भी मैं सोचता ही रहा कि शायद फिल्म की शूटिंग चल रही है और उसमें इसी दूल्हे की जरूरत होगी, इसलिए ये लोग मुझे दूल्हा बना कर बैठा दिया और जैसे पूरी शादी की रस्में होती है, उसी तरीके से शादी की सारी रस्में होना शुरू हो गया। सामने वाली दुल्हनिया बहुत सुंदर थी। देखने में अच्छी लग रही थी। पर मैं तो बेचारा बैहरा बन बैठा था, कुछ बोल ही नहीं पा रहा था। केवल अपने दोनों नैनों से सारी गतिविधियों को निरेख रहा था। पीछे में देखा की दो चार लोग आपस में कुछ बातें कर रहे थे कि दूल्हा अच्छा है। सरकारी नौकरी करता है। रेलवे डिपार्टमेंट में है। इसमें वे लोग भी थे जिन लोगों ने मुझे उठकर लाया था। बाकी सभी मेहमान जो वहां आए थे वह आनंद और अपनी पूरी उत्सव में दिखाई दे रहे थे।
किसी को कोई कानों -कानों तक भनक नहीं लगी। शादी की रस्में चलती रही। उसी क्रम में मैं इन लोगों को बातों से मिलाया कि शायद यह लोग मुझे मेरे कपड़ों से पहचान किया है कि हम सरकारी नौकरी में हूं। रेलवे डिपार्टमेंट में काम करता हूं। इन बातों से अब मुझे पक्का विश्वास हो गया कि सच में मेरी शादी हो रही है। हालांकि इन सबको शायद मालूम नहीं था की यह जो यूनिफॉर्म था। वह हमारे सोनपुर डायट कॉलेज का यूनिफॉर्म था। न की रेलवे डिपार्टमेंट की। क्योंकि मेरे कॉलेज का यूनिफॉर्म रेलवे डिपार्टमेंट की ग्रुप डी से मिलता जुलता था। शायद इन्हीं कपड़ों की वजह से भी ये लोग मेरा रेलवे डिपार्टमेंट में नौकरी है, समझ लिया।
शादी की रस्में समाप्त हुई। सारे मेहमान अपने घर की ओर निकले और हमें ये सभी लोग जहां से उठाए थे। जिस रास्ते से लाए थे। उस रास्ते की ओर दूल्हे वाली गाड़ी, जिसमें दुल्हन भी बैठी थी, के साथ निकल पड़े। रास्ते में मुझे से पूछा गया है कि आप कहां रहते है? मैंने रहने की पूरी पता बताई। गाड़ी रास्ते में ही थी तब तक जिस दुधैला गांव में हम रहते थे। वहां मेरी गाड़ी आने से पहले एक फ्लैट वाला रूम खोज दिया गया था। उसमें सारे बेडरूम सजाकर के तैयार कर दिया गया था, जैसे की एक दूल्हे-दुल्हन का कमरा होता है और वहां लाकर के हम दोनों को शिफ्ट कर दिया गया।
कभी मैं सोचा करता था की शादी तो करूंगा पर बिन बारात के, बिना दहेज के, बिना साज-बाज के और यही मेरे साथ हो गया।
खैर, इनसे जुड़े हुए इन सारे बातों को मैं दरकिनार करते हुए प्रत्येक दिन की तरह उस दिन भी कॉलेज गया। सभी बच्चों ने पूछे आप कल कॉलेज क्यों नहीं आए थे? पर मैं कोई जवाब नहीं दिया और इसी तरह से रोज-रोज कॉलेज जाता-आता रहा। बस पहले और आज में थोड़ा सा परिवर्तन ही हो गया था कि पहले अपने हाथों से खाना बनाना पड़ता था। अब बनाकर खिलाने वाला कोई साथी मिल गया था।
कुछ साथी लोगों ने पूछे कि भाई एक बाईग आपने रूम क्यों छोड़ दिया? जिसके साथ रहते थे उसे बिन बताएं। वहां से आपने तो अपनी बर्तन भड़िया तक भी नहीं ले गए। पर फिर भी मैंने कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं कैसे बताता कि मेरे साथ क्या हुआ है? और मेरे साथ जो भी आई हुई है, मैं मजबूर हूं उनके साथ रहने के लिए। क्योंकि उनके परिवार वाले इतने बड़े खानदान के रहने वाले हैं कि वह कुछ भी कर सकते हैं।
एक बात तो थी की वह बेचारी मुझे से कभी यह न पूछी कि आप कहां जाते हो? क्या करते हो? हालांकि धीरे-धीरे मेरे व्यवहार, मेरे गतिविधि से कुछ ना कुछ तो समझ गई थी।
इस तरह से धीरे-धीरे उसको मेरे बारे में पता चल गया था कि मैं कैसा हूं? किस तरह के परिवार से आता हूं। इसी क्रम में उन्होंने मेरे आधार का फोटो खींच कर के अपने घर वालों को भेज दी थी, जिस पर मेरा स्थाई पता था।
इस तरह से शादी के लगभग एक महीने समाप्त हो चुके थे। अब छुट्टी भी कॉलेज में दो-चार दिन की थी तो मैं सोचा कि घर जाकर के घुम आऊ। इसके पहले प्रत्येक छुट्टी पर अपने दोस्तों के साथ ट्रेन के माध्यम से घर जाते थे लेकिन इस बार घर जाने को जब तैयार हुआ तो वह भी जाने को तैयार हो गई। अब मैं कैसे कहता कि नहीं ले जाऊंगा? और डर यह भी था कि घर वालों को क्या बताऊंगा? कि कैसे हुआ? क्या हुआ? शादी की एक महीने बीत गए। मैं पहले आप लोगों को क्यों नहीं बताया? यही सोच रहा था और यही सोचते सोचते ही हमने उनके साथ इस बार बस के माध्यम से घर जाने के लिए तैयार हुआ और बस में सवार हो गए।
एक महीने के शादी के बाद भी हमारे उनके बीच जो संबंध था वह वैसे संबंध था जैसे मानो मोर मोरनी की, राधे कृष्ण की।
जब बस में सवार होकर के घर के लिए रवाना हुए तभी वह मेरी तरफ देखते हुए मुझसे बोली- आप डर रहे है क्या? मैंने कहा- नहीं तो, मैं क्यों डरूंगा? अब जो हो गया। सो हो गया। हालांकि अंदर से तो डर था ही, कि घर वालों को क्या बताऊंगा? कैसे समझाऊंगा?
अब मैं बस में बैठे – बैठे यह सोचने लगा, चलो उनकी तो गलतफहमी थी और गलतफहमी में मेरी शादी हो गई। पर जिस दिन यह दुल्हन जानेगी कि मैं एक रेलवे की कर्मचारी नहीं बल्कि एक प्रशिक्षु शिक्षक हूं तो उस समय कैसा उनका रिएक्शन रहेगा? क्या सोचेंगी? किस भवने से हमें देखेंगी?
क्योंकि हमेशा यह देखा गया है कि बड़े घर की लड़कियों को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कुछ भी कर लेती हैं लेकिन जब उनकी इच्छा के ऊपर कोई ठेस पहुंचता है। उनके सपने पूरे नहीं होते हैं तो वे लोग दूसरे तरीका से व्यवहार करना शुरू कर देते हैं। जबकि गलती सामने वाले की नहीं होती है।
फिर मैंने सोचा चलो जो भी हुआ। जिस गलतफहमी के कारण हुआ। उसको हम आज साफ-साफ बता ही देते हैं। फिर मैं बस में बैठे-बैठे सारी बातें उनसे बताना शुरु किया कि मैं कोई सरकारी कर्मचारी नहीं हूं। मैं रेलवे में नौकरी नहीं करता हूं। मैं एक….. तब तक उन्होंने अपने हाथ से मेरी मुंह बंद कर दी और बोली – कि आप जो भी कुछ है। वह बस मेरे पति हैं। इसके अलावा आप क्या करते हैं? नहीं करते हैं। उससे हमको कोई लेना-देना नहीं है। रही बात क्या हम कहेंगे? नहीं खाएंगे। इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। कहां से पैसा आएंगे? नहीं आएंगे। इसके लिए भी आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। बस आप जो भी कर रहे हैं या जो करते हैं। अपने इच्छा से करना चाहते हैं। वह करते रहे। उसमें हमारे तरफ से कोई रोकावट नहीं है। बस इतना समझले की आज से आप एक पत्नी की पति परमेश्वर है।
इतनी सारी बातों के बाद अब हम उनसे क्या कहते? फिर मैंने पूछा कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? आप इतनी अमीर घर के लग रही हो। तो फिर मेरे साथ शादी क्यों कर लीं। वह लड़का जो अभी अपनी जीवन में संघर्ष की लड़ाई लड़ रहा है। एक नौकरी प्राप्त करने के लिए किसी कोर्स की तैयारी कर रहा है और आपके यहां तो कई सारे नौकर है।
फिर उन्होंने बताई की ‘हां’ हम अमीर घर की हूं। हमारे घर बहुत सारे नौकर हैं पर इसका मतलब नहीं है कि मैं अपने घर के नौकर से ही शादी कर लूं। रही बात आपसे तो मेरी शादी कहीं और तय थी। वह भी धनी मनी परिवार के लोग थे। पर आज मुझे लगता है कि वे लोग धनी नहीं बल्कि लोभी और धन की भुखिया लोग थे, इज्जत की नहीं। इसलिए तो जिस दिन बारात आने को थी उस दिन वे लोग कुछ चंद पैसों की वजह से बारात लेकर के नहीं आए। जबकि उनकी मांगों के अनुसार सारी दान दहेज पूरा कर दिया गया था। अब अंत मौके पर कोई क्या करता? क्योंकि उस समय अगर सारे मेहमानों को पता चल जाता कि जहां शादी तय हुआ था। वे लोग दहेज के चलते नहीं आए तो फिर समझ में हमारे परिवार की इज्जत क्या रह जाती? इसलिए मैंने पिता जी से बोली – पिता जी मैं शादी के मंडप से खाली हाथ नहीं लौटना चाहती हूं। मुझे कहीं से भी, कोई भी लड़का ढूंढ कर शादी कराईए, मैं उनके साथ पूरी जीवन जी लुंगी। अब मैं किसी भी प्रकार से उन दहेज लोभियों के घर नहीं जाना चाहती हूं और नहीं आपके सिर झुकने देना चाहती हूं क्योंकि आप जो जितना दान दहेज उसको दिए हैं। उतना दान दहेज से तो जिसके भी घर जाऊंगी उसके घर रानी बनाकर रहुंगी। कई वर्षों तक जीवन यापन कर सकती हूं।
इस तरह से अब हम अपने गांव पहुंच गए। घर की ओर जब जा रहे थे तो कुछ लोग मेरे साथ महिला को देखकर के गहरी निगाहों से देख रहे थे। अपने में कुछ-कुछ चर्चाएं कर रहे थे। तभी जब हम अपने घर पहुंचे तो अपने ही घर को देखकर के भौचक रह गए। अपने ही घर को पहचान नहीं पा रहे थे। क्योंकि अब कि मेरा घर तो घर रहा नहीं। वह जो बिना पलस्तर वाली दीवार अब रंगाई पुताई से चमचमाती हुई दिख रही है। वह टिन वाली छत अब दो मंजिले मकान बनकर तैयार महल के जैसी दिख रही है। वह मिट्टी वाली आंगन में टाइल्स लगी हुई है। घर का सारा कुछ बदल गया था पर एक चीज वही था। वह मेरे घर का डिजाइन। पुराने तरीके से ही थी। उसी डिजाइन में इस महल को तैयार किया गया था।
यही देखकर की सारी विवेचना मन ही मन कर ही रहा था। तब तक घर से मां एवं उनके साथ कुछ महिलाएं थाली में दीप सजाकर निकली और घर में जैसे नई बहू की स्वागत की जाती है, वैसे उनकी स्वागत करते हुए पहले देवी स्थान। फिर उनके अलग कमरे में प्रवेश दिलाया गया और वह सारी प्रक्रिया हुआ जो एक नई नवेली दुल्हन अपने घर आती है उस समय जो किया जाता है।
मैं तो यह सोच में पड़ गया की कोई मुझे से कुछ पूछ नहीं रहा है। कि कैसे हुआ? क्या हुआ? तुम क्यों नहीं बताया? पूरा परिवार एकदम उस उत्सव में था जैसे मानो की सब जाने अनजाने में नहीं बल्कि सामने हुआ है। इस प्रकार पहला दिन बीता।
दूसरे दिन घर के एक सदस्य अपने आप ही मुझसे बताने लगे की आखिर यह सब कैसे संभव हुआ? किसने इतनी जल्दी इतना बड़ा महल जैसा मकान तैयार करवाया? कौन था? कहां का रहने वाला था?
इसी क्रम में उन्होंने बताया कि कुछ लोग चार पहिए गाड़ी से आए और नाम पता पूछे उसके बाद पुराने घर को उजाड़ना शुरू कर दिए। शुरुआत में तो हम लोग डर गए कि आखिर भाई कैसे हो सकता है? पहले तो हम लोग सोचे की जो केस हैं शायद उसी की वजह से कुर्की जपती हो रही है। पर फिर यह भी सोचा कि बिना नोटिस को कैसे हो सकता है? लेकिन कुछ ही देर के बाद जब वे लोग ईंट, बालू, सीमेंट गिरा करके रातों-रात घर बनाने की काम चालू करवा दिए। तब हमलोग आश्चर्यचकित हो गए और आसपास, पड़ोस, गांव के लोग भी आश्चर्यचकित हो गए और सोचने लगे की आखिर हो क्या रहा है? लोग देखकर हैरान रह जाते। अचानक कुछ दो-चार लोग चार पहिए गाड़ी से आते हैं। घर का पता पूछते हैं। फिर घर को उजड़वा करके नया घर बनवाना शुरू कर देते हैं। आखिर यह कौन लोग है? कहां के हैं? किसी को पता नहीं और मात्र 20 दिनों के अंदर जिसमें चार कोठरी, रसोई घर आदि के साथ दो मंजिला मकान बनवा कर तैयार करवा दे देते हैं। उसके बाद बिना कुछ कहे सुने एक पत्र छोड़ कर चले जाते हैं। जिस पत्र को हम लोगों ने पढ़वाया तो पता चला कि कुछ अनजाने में कुछ ऐसी निर्णय हो गई है, जिसको अब बदला नहीं जा सकता। जिसके लिए लड़की के पिता हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना किए थे कि आप मेरी बच्ची को अपने घर की बहू की दर्जा देकर स्वीकार करें और जो जाने अनजाने में गलती हुआ है, उसके लिए मुझे क्षमा करें।
इसलिए हम सभी गांव समाज के लोगों ने मिलकर के निर्णय लिया कि अगर एक बाप जो अपनी बेटी के लिए इतना लाचार हो गया है कि अमीर होते हुए भी हमारे सामने गिड़गिड़ा रहा है और जाने अनजाने में जो गलती हुई, उसके लिए क्षमा मांग रहा है तो क्यों ना हमलोग एक लाचार बाप की बेटी को बहू के रूप में अपना लें। इसीलिए तूने देखा होगा कि अभी तक तुझसे कोई नहीं किसी प्रकार की सवाल किया है।
तभी अचानक फोन की घंटी बजती है और मेरी नींद टूट जाती है फोन जब उठाया तो देखा कि अनिशा का फोन है। फिर वह बोली – लगन भैया परख सर्वे वाला में जो बैंक खाता संख्या, आधार संख्या आदि भरना है। वह थोड़ा भर दीजिए ना। फिर मैंने बोला – ठीक है डिटेल भेज दो।
इस तरह से नींद खुलने के बाद पता चला कि यह तो सारा एक ख्वाब था। ख्वाबों की सपनें थे।
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@जय लगन कुमार हैप्पी
बेतिया, बिहार।