खो गयी हर इक तरावट,
खो गयी हर इक तरावट,
मन हुआ पतझड़!
हाय रे ! बीहड़।
उफ़! समय से चोट खाये,
शोक में डूबे हुए हम।
घुट रही है साँस भीतर,
आप से ऊबे हुए हम।
मुँह चिढ़ाते दिख रहे हैं,
रोज़ कुछ गीदड़!
हाय रे ! बीहड़।
प्रशान्त मिश्रा मन
खो गयी हर इक तरावट,
मन हुआ पतझड़!
हाय रे ! बीहड़।
उफ़! समय से चोट खाये,
शोक में डूबे हुए हम।
घुट रही है साँस भीतर,
आप से ऊबे हुए हम।
मुँह चिढ़ाते दिख रहे हैं,
रोज़ कुछ गीदड़!
हाय रे ! बीहड़।
प्रशान्त मिश्रा मन