खोटा सिक्का
खोटा सिक्का सम नहीं, होता सबका भाल।
कैसे जाने आदमी, कैसी गृह की चाल।।
कैसी गृह की चाल, आदमी बेबश होता।
समझ न पाए हाल, रात दिन केवल रोता।।
तन का रहे न होश, नींद आंखों की खोता।
किस्मत को दे दोष, कर्म जब अपना खोटा।।
खोटा सिक्का सम नहीं, होता सबका भाल।
कैसे जाने आदमी, कैसी गृह की चाल।।
कैसी गृह की चाल, आदमी बेबश होता।
समझ न पाए हाल, रात दिन केवल रोता।।
तन का रहे न होश, नींद आंखों की खोता।
किस्मत को दे दोष, कर्म जब अपना खोटा।।