खोटा सिक्का
रात के दो बजे डोरबेल बजी।सैनी जी हड़बड़ाहट में उठे।सोचने लगे इतनी रात गए कौन आया होगा? जो भी हो, देखना तो पड़ेगा। खिड़की से झाँक कर देखा तो पड़ोस में रहने वाले रंजन बर्मन की श्रीमती जी खड़ी थीं। सैनी जी ने तुरंत दरवाजा खोला और पूछा, “क्या हुआ मैडम जी? आप इतनी घबराई हुई क्यों हैं? ”
श्रीमती बर्मन ने रोने लगीं। बोलीं, “भाई साहब! मिस्टर बर्मन की तबियत खराब हो गई है। साँस लेने में दिक्कत हो रही है। उन्हें अस्पताल लेकर जाना है। आप अपने बेटे से कहिए कि वह उन्हें कार में उठाकर बैठा दे।”
सैनी जी ने तुरंत अपने बेटे को आवाज लगाई। अमित बेटा! “जल्दी आओ। पड़ोस में रहने वाले बर्मन जी की तबियत खराब हो गई है।”
सैनी जी और अमित दोनों बर्मन जी के घर गए। उन्होंने उठाकर बर्मन जी को कार में लिटाया।सैनी जी ने अमित से कहा कि “बेटा तुम साथ में जाओ और मदद करो। यदि कोई विशेष बात हो तो मुझे फोन करना।” अमित ने हाँ में सिर हिलाया।
अमित ने श्रीमती बर्मन से कहा, “आंटी जी आप अंकल के साथ बैठिए। मैं कार ड्राइव कर ले चलता हूँ।”
अमित मिस्टर बर्मन को लेकर अस्पताल पहुँचा और इमर्जेंसी में तुरंत इलाज शुरू हुआ। डाॅक्टर ने बताया “इन्हें माइनर हार्ट अटैक हुआ है। आप लोग समय पर मेरे पास ले आए, नहीं तो …….।
श्रीमती बर्मन कृतज्ञता भरी नज़रों से अमित को देख रहीं थीं।
उन्होंने कभी अमित को अच्छा लड़का नहीं माना था। वह न तो उनके लड़कों जैसा पढ़ाई-लिखाई में बहुत होशियार था और न ही उसे कोई अच्छी नौकरी मिल पाई थी।
श्रीमती बर्मन के दोनों बेटे पढ़ाई में बहुत होशियार थे और बी टेक करके मल्टीनेशनल कंपनी में अमेरिका में काम कर रहे थे।
श्रीमती बर्मन को आज इस बात का अहसास हो रहा था कि जिसे वे खोटा सिक्का समझ रही थीं, वही उनके सुहाग को बचाने में काम आया।
डाॅ बिपिन पाण्डेय