खोज रहे हम नीर
चांद और मंगल पर जाकर
खोज रहे हम नीर
सूख रही जो धरती उसकी
नहीं सुन रहे पीर
जल से ही मानव, पशु, पक्षी
फूलों के उधान
जल संकट गहराया कितना
नहीं लिया संज्ञान
खुद ही मानव ने खतरे में
डाली अपनी जान
जलस्तर का गिरते जाना
मुद्दा है गंभीर
ताल – तलैया, कुंए, बावड़ी
प्यास भटकती घूम रही है
नदियां दिखती रेत
बार – बार सूखा कहता है
मानव अब तो चेत
वर्ना कल आंखों में होगी
सूखे की तस्वीर
काट रहे हैं पेड़ निरंतर
बोते रोज उजाड़
कौन मेघ का रस्ता रोके
तोड़े गये पहाड़
नदियों को विस्थापन देकर
कंकरीट से लाड़
सौंप रहे हैं हम भविष्य को
यह कैसी तकदीर!!!