खेल
खेल
अब जुआ सा लगने लगा है खेल
एक देना है दस लेना है
बस इसी में उलझ गया है देश
अब शरीफों का न रह गया खेत
जो जीते वह पाये जो हारे वह खोए
यही कश्म कस मे रह गया है खेल
खेल
अब जुआ सा लगने लगा है खेल
एक देना है दस लेना है
बस इसी में उलझ गया है देश
अब शरीफों का न रह गया खेत
जो जीते वह पाये जो हारे वह खोए
यही कश्म कस मे रह गया है खेल