खेल में जेल
09• खेल में जेल
छोटा-सा बाज़ारू कस्बा,सड़क के किनारे बसा ।सड़क के दोनों तरफ कुछ कुकुरमुत्तेनुमा दुकानें ।पास ही गाँव में दो छोटे किसान, मल्हू और पल्टू।सड़क के किनारे ही दोनों के खेतों के छोटे- छोटे टुकड़े ।गाँव में दोनों के घर भी पास-पास, यानी पडोसी ।दोनों के बड़े बेटे हम उम्र, 14-15 के। दोनों शाम को रोजाना साथ ही खेलते।
एक दिन मल्हू के घर पर देर शाम अंधेरे में छत पर ईंट-पत्थर बरसने लगे।मल्हू सपत्नीक शहर गए थे, अभी वापस नहीं आए थे ।बेटा अकलू ऊपर जाकर देखा ।अंधेरे में भी उसे पल्टू का बेटा रह-रहकर पत्थर फेंकता छाया जैसा नज़र आ गया ।कद-काठी से उसने रोहन को पहचान लिया ।बहुत शीघ्र उसे सब माजरा समझ में आ गया ।कल शाम दोनों का खेलते समय हार-जीत का झगड़ा हुआ था । रोहन उसी का गुस्सा निकाल रहा था ।अकलू भी क्रोध में जल-भुन गया ।आव देखा न ताव।दौड़ कर नीचे से निशानेबाजी सीखने वाला अपनी स्पोर्ट्स गन उठा लाया और निशाना बाँध कर अंधेरे में ही रोहन पर गोली चला दी। सोचा था उसे ज्यादा चोट भी नहीं लगेगी और आगे के लिए सबक भी मिल जाएगा ।लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नहीं ।गोली कहीं मर्म पर लगी और असर कर गई।रोहन के माँ-बाप चीख़ सुनकर जबतक छत पर पहुंचे और बात कुछ समझ में आई तबतक बेटा दम तोड़ चुका था ।अब रो-धोकर थाने में रपट लिखाने के सिवा और कोई उपाय नहीं बचा था ।
जाँच में पुलिस ने शीघ्र ही खेल में झगड़े की बात जान ली। पल्टू और मल्हू की छतों पर ईंट-पत्थर भी पड़े मिल गए । गाँव वालों ने जब यह बताया कि अकलू के पास स्पोर्ट्स गन थी तो खोज-खोज कर पुलिस ने उसके घर के पीछे की झाड़ियों में से वह गन भी बरामद कर लिया । फिर पूछताछ में कभी रोहन के दोस्त रहे अकलू ने रोते हुए अपनी स्पोर्ट्स गन के साथ ही गोली चलाने और फिर घर के पीछे की झाड़ियों में उसे फेंक देने की सारी बात स्वीकार ली।
आखिरकार मल्हू का बेटा अकलू,जिसने जोश में होश खो दिया और अक्ल से काम नहीं लिया, बतौर जेल बच्चों के सुधार-गृह में भेज दिया गया ।अब वहीं रहकर न्यायालय के फैसले का इंतज़ार कर रहा है ।
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—-राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ।
•(सुबह के एक स्वप्न का लिखित रूपांतरण)•