खेल खेल में छूट न जाए जीवन की ये रेल।
गीत-
जीवन क्या है समझ न पाए समझ रहे हैं खेल।
खेल खेल में छूट न जाए जीवन की ये रेल।
(कि भैया जीवन है ये रेल)
मां की कोख में देखा सबने स्वर्ग का एक नज़ारा।
सुख दुख जहां नहीं होता है वो संसार हमारा।
आकर इस दुनियां में हमने क्या पाया क्या खोया।
छोड़ के उसको पाकर इसको फूट फूटकर रोया।
सोचो प्यारे वो दुनियां या ये दुनियां है जेल।
खेल खेल में छूट न जाए जीवन की ये रेल।…1
मां के साए में जीवन था भय आतंक नहीं था।
जीवन में बस प्यार प्यार था कोई दंस नहीं था।
इस दुनियां में आते आते बिखर गए सब सपने।
दूर कर दिया मां से सबने जो बनते हैं अपने।
मेल जोल बढ़ गया उन्हीं से जो बिल्कुल बेमेल।
खेल खेल में छूट न जाए जीवन की ये रेल…2
मां मेरी थी मैं उसका था कोई नहीं थी बाधा।
इक दूजे पर न्योछावर थे जैसे कान्हा राधा।
भीड़ यहां रिश्तों की पाई पर वो प्यार कहां है।
लालच स्वार्थ भरा है सब में ये मतलबी जहां है।
प्रेम नहीं है जंग यहां पर गरज रहे राफेल।
खेल खेल में छूट न जाए जीवन की ये रेल…3
धीरे-धीरे हमने भी सबको ही अपना माना।
पता चला है छोड़ उन्हें फिर से वापस है जाना।
उस दुनियां से बिछड़ा था तब इस दुनियां को पाया।
फिर से यारो कहां है जाना समझ न अब तक आया।
आंख मिचौली खिला रहा है ‘प्रेमी’ जिसका खेल।
खेल खेल में छूट न जाए जीवन की ये रेल…4
(कि भैया जीवन है ये रेल)
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी