खेलता ख़ुद आग से है
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मेरा दिल भी जैसे कोई एक बच्चा है
खेलता ख़ुद आग से है और रोता है
मुद्दतों के बाद अपनों ने ख़बर ली है
आपको डर हो न हो मुझको तो होता है
आँख में बसकर भी कितनी दूर रहता है
बूढ़ी माँ का दर्द भी उसका ही बेटा है
कोई सन्नाटा नहीं है शोर है दिलकश
तेरा घर तो मेरे घर से लाख अच्छा है
एक-दूजे पर हँसे होंगे मियां-बीवी
वर्ना अब अपने घरों में कौन हँसता है
क़हर क्या बरपा है इस जम्हूरियत ने भी
हर कोई अब अपने हक़ में बात करता है
… शिवकुमार बिलगरामी