खेती का खेल
खेती का भी खेल अजब है, जीत के भी हम हारे हैं
अन्नदाता कहलाते फिर भी भूखे पेट हमारे हैं
धूप, आँधियाँ, बारिश, पाला, हमको नहीं डिगा पाएं
कीट, पतंगे, रोग, बीमारी, सपने कई मिटा जाएं
आशाओं के बीज ही बोते, राह भले अंगारे हैं
अन्नदाता कहलाते फिर भी भूखे पेट हमारे हैं
खेत जोत पहली बारिश में, उन्नत बीज लगा आये
बंधी टकटकी आसमान पे, आस सभी टूटी जाये
बारिश की अब राह में देखो, सूखे खेत हमारे हैं
अन्नदाता कहलाते फिर भी भूखे पेट हमारे हैं
बेटा पढ़ना चाह रहा है, बिटिया है बढ़ती जाती
पत्नी की छोटी चाहत भी, मुझको मुँह चिढ़ा जाती
कर्जे के अब बोझ तले क्यूँ, किस्मत के हम मारे हैं
अन्नदाता कहलाते फिर भी भूखे पेट हमारे हैं
दुनिया भर के स्वप्न उगाकर अपने स्वप्न भुला जायें
रात-दिन मेहनत करके भी, हाथ सिर्फ आसूँ आयें
जय जवान और जय किसान भी, आज बने बस नारे हैं
अन्नदाता कहलाते फिर भी भूखे पेट हमारे हैं
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
बैतूल (म. प्र.)