” खूब सहेजें प्यार से ” !!
स्वाति बूँद बनी मोती तो ,
खूब सहेजें प्यार से !
और आँख से ढलते मोती ,
बहते हैं निस्सार से !!
दर्द छलकता यहाँ वहाँ है ,
अनुभूति पलती गहरी !
जिसने पाया मोती देखो ,
उसकी किस्मत हैं सँवरी !
खारे आँसूं मिले खुशी के ,
खुशियों की बौछार से !!
बड़ी प्रतीक्षा करना होती ,
मोती कब ढल पाए है !
आँसूं तो आँखों से बरबस ,
यों ही निकले जाए हैं !
जान सके कीमत दोनों की ,
जीवन के व्यवहार से !!
कहीं आब है कहीं ताब है ,
आँसू बिखरा जाए है !
मोती तो है ठोस बड़ा औ ,
आब सदा दिखाए है !
इसीलिये शोभा सजती है ,
मोती के गलहार से !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास