खून का रिश्ता
सड़क के किनारे खून से लथपथ पड़े हैप्पी सिंह पर जब शिशिर की अकस्मात नज़र पड़ी तो वह उन्हें अस्पताल लेकर पहुँचा और उन्हें भर्ती कराया तो थोड़ी देर बाद एक नर्स ऑपरेशन थियेटर से बाहर आई और पूछने लगी-“सरदार जी के साथ कौन है?”
शिशिर जो कि ऑपरेशन थियेटर के बाहर ही बेंच पर बैठा था,तुरंत उठ खड़ा हुआ और बोला,जी सिस्टर बताइए ,क्या बात है? अब हैप्पी अंकल कैसे हैं?
बेटा, चिंता की कोई बात नहीं है, वे पूरी तरह ठीक हैं। आप चाहें तो उनसे जाकर मिल सकते हैं।
ठीक है सिस्टर, मैं जाकर देखता हूँ।
जब शिशिर अंदर जाने लगा तो नर्स ने पूछा, वैसे आप उनके कौन हैं? भाई हैं, बेटे हैं?
नहीं, न मैं भाई हूँ और न बेटा हूँ।पर उनसे मेरा खून का रिश्ता जरूर है।
वह कैसे बेटा ? मैं कुछ समझी नहीं।
शिशिर ने बताया ,जब पिछले साल मुझे डेंगू हुआ था और मेरे प्लेटलेट्स दस हज़ार रह गए थे, मुझे खून की जरूरत थी।कहीं मेरे ब्लड ग्रुप का खून न मिलने पर माँ बहुत परेशान हो रही थीं।अस्पताल में बैठी रो रही थीं तो यही हैप्पी अंकल थे जो मेरी माँ के पास आए थे और उनसे पूछा था, बहन जी क्या हुआ? आप क्यों रो रही हैं?
माँ ने उन्हें बताया कि उन्हें ‘ए बी निगेटिव’ ब्लड की जरूरत है पर कहीं मिल नहीं रहा।मेरा बेटा बीमार है और उसे खून की सख्त जरूरत है।
इत्तेफाक से हैप्पी अंकल का ब्लड ग्रुप ‘ए बी निगेटिव’ ही था।
उन्होंने कहा, कोई बात नहीं । आप परेशान न हों। मेरा ब्लड ग्रुप ‘ए बी निगेटिव’ ही है। मैं आपके बेटे को खून दूँगा।
हैप्पी अंकल के खून देने से ही मेरी जान बची थी।आज अगर मैं जीवित हूँ तो हैप्पी अंकल के कारण।
अब आप ही बताइए, मेरा उनका खून का रिश्ता हुआ या नहीं।
बिल्कुल खून का रिश्ता है, बेटा।आप सही कह रहे हैं।
नर्स हतप्रभ थी ,यह सुनकर।उसे लगा कि आज भी दुनिया में इंसानियत ज़िंदा है और कृतज्ञता का भाव भी।
डाॅ बिपिन पाण्डेय