खुश रहिये , खुशी बाँटिये ।
सुखों की नाव डोलती जाए डोलती जाए !!
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रोज की जिंदगी में जीते हुए दरअसल हमको सही अर्थों में सुखों का अर्थ मालूम ही नहीं चल पाता, क्योंकि सुख की हमारी कल्पना एक अजीब किस्म की कल्पना है ,जो हकीकत में जैसे कभी साकार ही नहीं होती !!
मैदान में कुछ बच्चे खेल रहे हैं ,हम उन्हें देख रहे हैं ,बड़ा आनंद मिल रहा है ,हम स्वयं भी बच्चों के साथ खेलने लग जाते हैं ,कितना अनिर्वचनीय आनंद है बच्चों के साथ खेलना ,मासूमों के साथ खेलना !! उन मासूमों की तोतली-तोतली और बहुत सारी अजीबो-गरीब बातों का आनंद लेना तथा और भी कितना ही कुछ !! किन्तु तभी अचानक किसी बच्चे के हाथ से किसी को चोट लग जाती है या दो बच्चे झगड़ पड़ते हैं या कोई एक अपनी जिद पर अड़ जाता है ,अचानक हमारे सुखों में ब्रेक लग जाता है ! आनंद के वे पल तत्क्षण गायब और डांट-फटकार- गुस्सा ,इन सबका समय चालू !! पलभर में ही वह सुख गायब और तनाव दिमाग पर हावी !!
अभी अभी कोई गोष्ठी या कोई ऐसा कार्यक्रम चल रहा है ,जहां पर बहुत सारे लोग जमा हैं और अभी-अभी हमारी पढ़ी किसी रचना पर सब हमारी भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहे हैं ,बड़ा सुख मिल रहा है अचानक एक व्यक्ति ने हमारी उस रचना की समीक्षा कर दी, जिसमें कुछ आलोचना भी थी और हमारा सुख गायब हो जाता है ,एक तनाव मन में छा जाता है और कहीं-ना-कहीं एक छोटी-सी शत्रुता उस समीक्षक मित्र के लिए हमारे मन में उपज जाती है !!
तो क्षण में सुख है और क्षण में तनाव या दुख भी ,लेकिन इस से इतना तो जाहिर है की सुख तो अपने आप आता है जबकि दुख बहुतेरे हम खुद निर्मित करते हैं ! अपनी असीम चाहतों की कल्पना के रास्ते में कोई भी विघ्न, जिसे हम नहीं चाहते ,तत्क्षण ही हमारा दुख बन जाता है !!
जिंदगी को अगर गौर से देखें और अगर आप अपने ही साक्षी होकर जी सकें ,तब ही आपको मालूम पड़ता है कि किन बातों से आपने व्यर्थ का दुख निर्मित कर लिया, जहां पर आप बहुत आराम से उन पलों को गुजार सकते थे और जिन्हें आप विघ्न समझ रहे हैं उन विघ्नों का भी मजा ले सकते थे ,लेकिन आपने ऐसा नहीं किया और वह विघ्न जो आप की सामर्थ्य की परीक्षा लेने के लिए प्रस्तुत हुए थे ,आपने उन्हें अपना दुख बना लिया !!
इस प्रकार जिंदगी तो धूप छांव है ही ,हर पल एक चक्र है ,हर समय एक चक्र है ,हर मौसम एक चक्र है ,धूप छांव भी चक्र है तो दुख-सुख भी तो चक्र ही है ना ? पल-पल में चीजें बदलती हैं और पल-पल हमें उनके लिए तैयार होना होता है ,जिस पल भी हम किसी पल के लिए तैयार नहीं हैं ,वही हमारा दुख है !अपनी काल्पनिक दुनिया में जीते हुए हम अक्सर हकीकत से कितना दूर होते हैं कि एक सामान्य-सी वास्तविकता भी हमारे दुख का कारण बन जाती है ,क्योंकि हम तो किसी और चीज के इंतजार में होते हैं और हमारे सामने कुछ और ही चीज आ जाती है !तो हम उस चीज का स्वागत न करके दुख में पड़ जाते हैं ,यह बहुत अजीब बात है ,क्योंकि हम जानते हैं कि एक पल भी हमारे बस में नहीं है और जो चीज हमारे बस में नहीं है वह किस पल कौन से रंग लेकर हमारे सामने प्रकट होगी ,प्रस्तुत होगी ,यह भी हम नहीं जानते ,लेकिन जो भी चीज प्रस्तुत होती है ,यदि वह हमारे मनोनुकूल नहीं होती तो हम उसे अपना दुख बना लेते हैं !!
तो इस तरीके से जीते हुए हम अपने अधिकतम जीवन को दुख बनाए रखते हैं ,बहुत सारी सामान्य-सी बातें भी हमें अपने खिलाफ लगती हैं , यहां तक कि कितनी ही बार हम इस उल्टी-पुलटी सोच से ग्रस्त रहते हैं कि फलां आदमी हमारे बारे में क्या सोच रहा होगा या फलां आदमी ने हमारे द्वारा किए गए फलां कार्य पर क्या प्रतिक्रिया दी होगी और अपनी एक काल्पनिक सोच भी उस व्यक्ति पर प्रक्षेपित कर देते हैं हम कि उसने यह सोचा होगा या उसने वह कहा होगा !!
अपने समक्ष अचानक आ गई परिस्थितियों की बाबत भी हम सोचते हैं कि ईश्वर ने हमारे साथ ही ऐसा क्यों किया और यह सोच-सोच कर अपने आप को सताते रहते हैं कि हम सबसे मनहूस वह प्राणी है जिसको ईश्वर ने इस प्रकार के दुख के लिए चुना है जबकि ईश्वर ऊंच-नीच की छटाँक भर ऊपर-नीचे के साथ सब को जन्म दे रहा है और सब के जीवन में ऐसी ही ऊंच-नीच की परिस्थितियां उत्पन्न कर रहा है ,जिससे हम संघर्ष की आग में तपकर सोना बन सकें ,कुंदन बन सके ! लेकिन हम यह जानते हुए भी कि सोना भी आग में तपकर ही जेवर बनता है ,हम अपने संघर्षों की आग को दुख समझ बैठते हैं और यही समझते हैं कि यह आग हमारा जिस्म जला रही है ,हमारे हाथ जला रही है !! कितना अजीब है ना यह कि हमें पता है कि आग अपने-आप में निरपेक्ष है ,इस आग से हम खाना पका रहे हैं ,इस आग से हम अन्य कार्य भी कर रहे हैं और इसी आग की सहायता से दुनिया में हर एक चीज बन रही है ,कोई भी चीज गरम हुए बगैर ,जले बगैर अपने पूर्ववर्ती रूप से अलग होकर नए रूप में नहीं आ पाती ,फिर भी आग को हम दुख समझते हैं !!
वस्तुतः संघर्ष ही वह आग है जिससे निखर कर हम एक वास्तविक इंसान के रूप में परिणत होते हैं ,लेकिन तब भी संघर्ष हमें अपने दुख लगते हैं और जब हमारी मानसिकता ही ऐसी हो ,तब हम भला क्यों सुख को जीवन समझ पाएँ और जीवन को सुख से भर पाएँ !!
~~~~~राजीव थेपड़ा
With Sonal Thepra