खुशी ( मुक्तक )
खुशी की चाहतों को बंगलों-कारों में मत ढूँढो (मुक्तक)
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खुशी की चाहतों को बंगलों-कारों में मत ढूँढो
खुशी को पद प्रतिष्ठा धन के बाजारों में मत ढ़ूँढो
खुशी भीतर की खुशबू है, महक बसती है साँसों में
खुशी को खास मौसम-दिन के गलियारों में मत ढूँढो
रचयिताः रवि प्रकाश, रामपुर