*खुशी के आँसू (छोटी कहानी)*
खुशी के आँसू (छोटी कहानी)
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युवावस्था के प्रारंभ में ही इस प्रकार की अनहोनी जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है। राधिका के साथ भी यही हुआ । नौकरी लगी ही थी कि एक शाम कालेज से लौटते समय उसके साथ कुछ गुंडों ने जो बलात्कार किया, उसने उसके जीवन को ही मानो पत्थर बना कर रख दिया।
राधिका अस्पताल में गुमसुम बैठी रहती है । न कुछ बोलती, न सुनती है। शरीर की हलचल ही मानों समाप्त हो गई हो। राधिका की माँ यह देख कर बहुत दुखी थी । दुख इसलिए भी था कि घटना के तुरंत बाद जिस लड़के से राधिका की शादी तय हुई थी, उसकी माँ का दो टूक जवाब आ गया -“ऐसी बदनाम लड़की से हम अपने लड़के की शादी करके क्या करेंगे ? हम यह रिश्ता तोड़ते हैं ।”
बस इसी बात की कमी रह गई थी । राधिका की माँ मुँह से अपनी बेटी को यह बात बताती , लेकिन कमरे में जैसे ही पीछे मुड़ीं, उन्होंने देखा कि राधिका रो रही थी। उसने सारी बात सुन ली थी । यह राधिका की अंतिम सुगबुगाहट थी । फिर उसके बाद वह कभी नहीं रोई।
घटना को धीरे धीरे चार दिन बीत गए। डॉक्टरों ने स्पष्ट कह दिया कि या तो इस लड़की को रुलाओ या फिर इसे परिस्थितियों को झेलने के लायक बनाओ। वरना यह मर जाएगी ।
अनहोनी एक के बाद दूसरी भी हो जाती हैं ।कुछ ऐसा ही इस बार भी हुआ । जिस लड़के से राधिका की शादी तय हुई थी और जिसकी माँ ने रिश्ता तोड़ दिया था, इस बार खुल उस लड़के का फोन राधिका की माँ के पास आया । कहने लगा -“मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। रिश्ता टूटना नहीं चाहिए था। किसी के अपराध की सजा किसी दूसरे निरपराध को क्यों मिलनी चाहिए ? अपराधियों ने किया ,सजा उन्हें मिलनी चाहिए । राधिका तो मासूम है । उसे तो यह भी नहीं पता कि यह संसार कितना क्रूर और पाशविक हो चुका है।”
फोन पर बात करते करते ही राधिका की माँ ने फोन बेटी के हाथ में पकड़ा दिया और आश्चर्य देखिए , वह राधिका जो पिछले चार दिन से पत्थर बनी बैठी थी ,न जाने कैसे अब उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी । माँ ने महसूस किया कि यह खुशी के आँसू हैं। उसे लगने लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा ,क्योंकि जहाँ नासमझ लोगों की कमी नहीं है, वहीं समझदार लोग अभी भी दुनिया में जीवित हैं।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451