” खुशियों के पल साँचे हैं ” !!
कोई बंधन बांध न पाये ,
तब मन मयूर नाचे है !!
पावस ऋतु जब मन हरषाये ,
हरी चुनरिया को लहराये ,
लेता मौसम अंगड़ाई है ,
खुशियों के पल साँचे है !!
बूंदों की बजती सरगम है ,
ठिठुर चले भीगे तन मन हैं ,
घटा सजीली , दामिनी आतुर ,
भरती लगे कुलांचे है !!
बंटी हुई हर महफिल लगती ,
लगे अकेली सबकी बस्ती ,
हम अपनी मस्ती में डूबे ,
पृष्ठ मधुरतम बाँचे हैं !!
जीवन लगता कभी झमेला ,
कभी लगे खुशियों का मेला ,
पंख पसारे , रहे विचरते ,
सच्चाई को जाँचे हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )