खुशियों के गंधर्व
खुशियों के गन्धर्व
द्वार द्वार नाचे ।
प्राची से
झाँक उठे
किरणों के दल,
नीड़ों में
चहक उठे
आशा के पल,
मन ने उड़ान भरी
स्वप्न हुए साँचे ।
फूल
और कलियों से
करके अनुबंध,
शीतल बयार
झूम
बाँट रही गंध,
पगलाये भ्रमरों ने
प्रेम-ग्रंथ बाँचे ।
– त्रिलोक सिंह ठकुरेला