खुशियों की दीपावली (छोटी कहानी)
छोटी कहानी ःखुशियों की दीपावली
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“अरी बहू ! क्या बात है ,तीन बज गए ।अभी तक दोपहर का खाना खाने कुंदन नहीं आया कहां चला गया है”। चिंतित होते हुए अम्मा जी ने अपनी पुत्रवधू विनीता से कहा ।
विनीता ने शांत भाव से जवाब दिया “अम्मा जी ! आज तो दीपावली है ।रात से बैठकर पटाखे और आतिशबाजी की लिस्ट तैयार कर रहे थे। वही लेने गए होंगे। मैं तो समझा – समझा कर हार गई “।
अम्मा जी थोड़ा गुस्से में आ गईं। बोलीं” इतनी बार इसे समझाया कि पैसे को आग मत लगा लेकिन हर साल दस बीस हजार की आतिशबाजी लेकर आता है । यह भी तो नहीं देखता कि कमाई कितनी है। बस दो-चार इसके साथ के यार दोस्त हैं जो इसको चढ़ाते रहते हैं और 2 घंटे में सारा रुपया फूंक कर चले जाते हैं”।
विनीता ने कहा ” अम्मा जी! मैं हर साल समझाती हूं लेकिन कोई असर नहीं होता”।
अब अम्मा जी थोड़ी उदास होने लगीं। खाट पर बैठ गयीं। घुटनों को सहलाने लगीं और बोलीं”-” कई साल पहले की बात है, इसने आंगन में ही सारी आतिशबाजी जला दी थी. नतीजा यह हुआ कि 2 घंटे में जाकर धुआं थोड़ा कम हुआ. मैं तो सांस लेने तक से मुश्किल में आ गई थी. बस यह समझो कि दम घुटने से बची”।
फिर कहने लगीं कि आतिशबाजी नीचे छोड़ो, ऊपर छोड़ो ,बाहर छोड़ो ! क्या फर्क पड़ता है! धुँआ तो सब जगह हवा में फैला रहता है । आज दिवाली है लेकिन मैं तो कई दिन पहले से सांस लेने में मुश्किल महसूस कर रही हूं ।जब सारे लोग ही पटाखे छोड़ते रहेंगे और माहौल को जहरीला करते रहेंगे तो हम बूढ़े सांस लेने कहां जाएंगे “।
यह बातें हो ही रही थीं कि दरवाजे पर कुछ आहट हुई । अम्मा जी ने विनीता के साथ जाकर बाहर देखा तो पता चला कि कुंदन खड़ा हुआ है और ठेले पर से कुछ उतरवा रहा है। विनीता ने देखा तो उसकी आंखों में चमक आ गई । मुंह से अचानक निकाला -“अरे वाह ! वाशिंग मशीन ! क्या बात है ! आज वाशिंग मशीन ले आए । मैं तो पिछले छह-सात साल से बराबर इसी के लिए कह रही थी”।
कुन्दन ने कहा-” आज देखो ! दीपावली के शुभ अवसर पर मैं घर में वाशिंग मशीन लेकर आया हूं । अब इसका उपयोग पूरे घर को मिलेगा , फायदा सबको मिलेगा।”
वाशिंग मशीन घर में क्या आई, खुशी की लहर दौड़ पड़ी। अम्मा जी ने कुंदन को सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया। थोड़ी देर बाद जब मशीन रखकर ठेलेवाला चला गया। मशीन फिट हो गई । शाम होने लगी तो कुंदन के पास फोन आया।
” क्यों भाई सुना है, इस साल आतिशबाजी नहीं होगी”
कुंदन ने जवाब दिया “हां यार ! इस बार वाशिंग मशीन खरीद ली “।
उधर से जवाब आया “अब तेरी जिंदगी में उत्साह नहीं रहा ।”
कुंदन ने फोन बंद कर दिया लेकिन दोस्तों की संख्या 1 से ज्यादा थी .थोड़ी देर बाद फिर फोन की घंटी बजी। कुंदन ने फोन उठाया”- अरे भाई क्या बात है ? आज उदासी में दीपावली मनाओगे ? कोई आतिशबाजी नहीं, पटाखे नहीं!”
कुंदन ने फोन रख दिया । फिर एक फोन आया “अरे यार! दीवाली तो साल में एक ही बार आती है । घर गृहस्थी तो रोजाना चलाते रहोगे । यह क्या! वॉशिंग मशीन ले आए। पटाखे सुना है, एक भी नहीं लाये “।
कुंदन बोला “हां सही सुना है ”
और फोन उसने काट दिया ।
फिर जब शाम ढ़ली तो कुंदन ने विनीता से कहा-” इस बार मैंने आज सुबह ही सोच लिया था कि पटाखे और आतिशबाजी में पैसा बर्बाद नहीं करूंगा। कितनी मुश्किल से हम कमाते हैं और सचमुच हमारी हैसियत दस बीस हजार खर्च की नहीं है। पटाखों में खर्च करके वातावरण भी प्रदूषित होता है । अम्मा जी को सांस लेने में कितनी तकलीफ होती है। इसके अलावा पिछले साल सड़क पर जो हम जा रहे थे तो तुम्हें याद होगा किसी ने पैर के पास पटाखा फोड़ दिया था और तुम्हारी साड़ी में आग लगते लगते बची । फिर भी पैर में जख्म हो गया था , जो तीन-चार दिन में जाकर भरा।… आज हम सचमुच खुशियों की दीपावली मना रहे हैं”।
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लेखक : रवि प्रकाश, रामपुर