खुशामद
कभी खुशामद क्यों करे,
सक्षम और समर्थ।
जो कथनी मुँह से कहे,
भिन्न रखे ना अर्थ।
भिन्न रखे जो अर्थ,
दोगला वह कहलाए।
जिसके मन में स्वार्थ,
खुशामद में मिमियाए।
कह नारायण बात,
खोजकर करो बरामद।
जिसमें कुछ औकात,
करे ना कभी खुशामद।
संजय नारायण