खुद से प्यार कर
खुद से प्यार कर
क्या है यार, जो आईना देखते हो
और जो इंसान तुम्हे नज़र आता है
इसे ख़ुश रखने में क्या जाता है
यही तुम्हारा असली फ़र्ज़ कहलाता है
क्या है यार, जिसके लिए तू कमाता है
अक्सर उसे ही नज़रअंदाज कर जाता है
दुनिया के सामने बड़ा खुल कर मुस्कुराता
और अकेले में क्यो खुद पर तू प्रश्न उठाता
क्या है यार,भाग रहा है नाम कमाने को
पर उस नाम से रिश्ता कहां तू निभाता है
खुद को बार बार ही चोट पहुंचाता है
औरों की खातिर खुद को तू रुलाता है
क्या है यार, लोगों की बहुत सोचता है
खुद से तू कम ही रिश्ता निभाता है
लोग तो आते है, जाते है जिंदगी में
पर खुद से दूर, तू कब छुप पाता है
तो बस कर जिंदगी बहुत हुआ अब
तुझ संग अब हम नहीं खेलेंगे
तेरे बहलाने में नहीं आने वाले
हम तो अब खुद के ही हो लेंगे
दीपाली अमित कालरा