खुद से ज़ब भी मिलता हूँ खुली किताब-सा हो जाता हूँ मैं…!!
अक्सर रातों में मिलता हूँ खुद से अकेले में,
दिल की दिल से सुनता हूँ.. जज़्बातों के घेरे में !
अब इन अंधेरों से डर नहीं लगता,
किसी भी दौर में निकल पड़ता हूँ रातों में अकेले ही !
चेहरा खामोश.. मन में गहरा शोर
खुद के सवालों में उलझा रहता हूँ, गुमनामी के अँधेरे में !
कभी खुद के इश्क़ में रहता हूँ,
खुद के एहसासों को निचोड़ता हूँ,
फिर उन्हें शब्दों में पिरोता हूँ !
रातें छोटी लगने लगती है ज़ब
मैं जज़्बातों को लफ्ज़ो से संजोता हूँ !
लोगों से अपने दर्द जाहिर करने से बहुत कतराता हूँ मैं,
खुद से ज़ब भी मिलता हूँ खुली किताब-सा हो जाता हूँ मैं…!!
❤️ Love Ravi ❤️