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31 Jul 2016 · 1 min read

खुद सूरदास की आँखों से …….

देखा महादेवी, दिनकर को और पंत, निराला देखा है,
हमने मंदी के दौर सहे और कभी उछाला देखा है,
क्या युग था कवि का, कविता का था शब्दों का सम्मान बढ़ा,
कितने मंचों पर हिंदी का, पिटते दीवाला देखा है ।

हमने नीरज के हाथों में, देखा है गीतों का प्याला,
भर भर के जाम पिलायी थी दुष्यंत ने ग़ज़लों की हाला,
थी कैसी अनबुझ प्यास पिओ उतनी ही बढ़ती जाती थी
हमने बच्चन को कन्धों पर ढो़ते मधुशाला देखा है ।

रसखानी छंदों में डूबा पूरा ब्रज, डूबी ब्रजबाला,
मीरा ने अपने भजनों में गाया था गिरधर गोपाला,
नानक, तुलसी, कबीरा, दादू क्या इनका कोई सानी था,
खुद सूरदास की आँखों से हमने नन्दलाला देखा है ।

वो दिन भी आयेगा फिर से, जब मान बढ़ेगा हिन्दी का,
भारत माता के शीश मुकुट पर चाँद चढ़ेगा हिन्दी का,
सब इक-इक दीप जलाएंगे तो अन्धियारा मिट जाएगा,
हमने तो स्याह सुरंगों के उस पार उजाला देखा है ।

-आर०सी० शर्मा “आरसी”

Language: Hindi
Tag: गीत
4 Comments · 576 Views
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