ज़िंदगी पर लिखे अशआर
* खुद को भी अपना कुछ अधिकार दीजिए।
शर्तों में लिपटी ज़िंदगी को जीने से इंकार कीजिए ।।
* जीने को ज़िंदगी के हक़दार
वही तो हैं ।
ज़ेहनों पर निशां छोड़े
किरदार वही तो हैं ।।
* कितनी गुज़री है कितनी बाक़ी है ।
पल दो पल की ये बस कहानी है।।
जीत वो ज़िंदगी नहीं पाया।
जिसने खुद से ही हार मानी है।।
*:ज़िंदगी कुछ नहीं हक़ीक़त में ।
एक तमाशा है चंद सांसों का ।।
* हर सांस का कर्ज़ अदा करने में रह गये ।
महसूस तुझको हम न कभी कर पाये ज़िंदगी ।।
* जीना चाहता है कोई उसको भी ।
ज़िन्दगी इतना तो समझ लेती ।।
* यह ठहरती नहीं तेरे ठहर जाने तक।
ज़िन्दगी तो गुज़रती है गुज़र आने तक ।।
* मुकम्मल ज़िंदगी को नामुकम्मल रक्खा ।
खोकर तुमको खुद को अधूरा रक्खा ॥
बस इसी उम्मीद पे मिल जाओ मुझे तुम ।
ख्वाबों का हक़ीक़त से कहाँ रिश्ता रक्खा ॥
* ज़िंदगी पा के तुझको खोया है।
सोच भर दिल भी मेरा रोया है ।।
अहमियत उससे पूछो ख़्वाबों की
नींद अपनी जो कभी न सोया है ।।
* ख़्वाब तेरा, तेरा ख्याल लिए ।
ज़िंदगी यूँ भी हम गुजारेंगे ।।
* भुला के बैठे है नादां ज़िंदगी की हक़ीक़त को।
किसी को मिट्टी तो किसी को राख़ होना है ।।
* खो के बैठे थे अपने हाथो से ।
ढूंढ लाते फिर ज़िंदगी कैसे।।
* जिनको हासिल हयात कह दें हम ।
ज़िंदगी के यही वो लम्हें हैं ।।
* इससे कम तुमको कुछ नहीं दूंगी।
मैं तुम्हें अपनी ज़िंदगी दूंगी ।।
* फैसला हम अगर कोई करते।
नाम तेरे ये ज़िंदगी करते ।।
* ज़िंदगी से गिला नहीं कोई।
तेरी मौजूदगी ही काफी है।।
*अपने आमाल पर जो नजरे इनायत करते।
ज़िंदगी से न कभी आप शिकायत करते ।।
* हमने देखी है तेरी आंखों से ।
ज़िंदगी मिलनी खूबसूरत है।।
* ज़िंदगी खुल के सांस ले पाये ।
दिल की ख्वाहिश को थोड़ा कम रखिए ।।
* ज़िंदगी का सफर – सफ़र न हो ।
रह-गुज़र हो कोई गुज़र न हो ॥
* जानता है वही जो इस दर्द से
गुज़रता है।
एक जिंदगी मे कोई कितनी मौत
मरता है।
* ज़िंदगी तुझसे इतना तो निभा ही देंगे ।
आपने होने की हम खुद ही गवाही देंगे ।।
* राहते ज़िंदगी से मिल जाती।
भूख बेहिस अगर नहीं होती ।।
* पलक झपकते ही मंज़िल पर
जा ठहरता है ।
यह ज़िंदगी का सफ़र इतना
मुख़्तसर क्यों है।।
*.हम बिछड़ कर जो तुमसे मिल जाते ।
ज़िंदगी का सफ़र त’वील न था ॥
* समझना तुम्हे हाँ जरूरी नहीं है।
तुम ज़िन्दगी का मतलब नहीं हो।।
* ज़िंदगी का सवाल देता है ।
मुझको मुश्किल में डाल देता ।।
जो हक़ीक़त कभी नहीं होंगे ।
क्यों मुझे वो ख़याल देता है ।।
* देख लेते हम अपनी आंखों से ।
ज़िंदगी ख़्वाब तो नहीं होती ।।
* ज़िंदगी सबको अच्छी लगती है ।
लोग मजबूर हो के मरते हैं ।।
* बस ख़ाली हाथों के सिवा ।
ज़िंदगी तेरा हासिल क्या है ।।
* तुझसे बस तेरा ही पता चाहे ।
ज़िंदगी तुझसे और क्या चाहे ।।
* थाम पाया न जिसका कोई मुख़्तसर लम्हा ।
ज़िंदगी हाथ से झड़ती रेत हो जैसे ।।
* सांस एक भी नहीं तेरे बस में ।
ज़िंदगी का गुरूर कैसा है ।।
* पढ़ने की कोशिशें सभी बेकार हैं तेरी ।
लफ़्ज़ों में ज़िंदगी को समेटा न जाएगा ।।
* ज़िंदगी तुझसे यहाँ कौन कटा होता है ।
दर्द हर सांस के हिस्से में बंटा होता है ।।
* उम्र भर हो न पाई भरपाई ।
कितनी टुकड़ों में ज़िंदगी पाई ।।
* शुरू होती ख़त्म जहाँ से है ।
ज़िंदगी तेरी हद कहाँ से है ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद