खुदा तो हो नही सकता –ग़ज़ल
==================ग़ज़ल===============
मिले जो फूल के बदले मै कांटें बो नही सकता ।
भरे है आँख मे आँसू मग़र मै रो नही सकता ।
ये दुनिया है करेगी ही सितम इसको जो करना है ।
नफ़ासत यार दुनिया की उमरभर ढो नही सकता ।
सकूनों के लिए रब की इबादत रोज़ करता हूँ ।
लगा जो दाग़ दामन पर अकेले धो नही सकता ।
मेरे हमराह मुझ पर ही लगा इल्ज़ाम हँसते है ।
गवाही के लिए हरगिज़ शराफ़त खो नही सकता ।
चला हूँ फ़ूक कर राहे वफ़ा सुनसान गर्दिश मे ।
ज़रा दूरी पे मंज़िल है मग़र मै सो नही सकता ।
मिलेगी बेवफ़ाई ही ज़रा सी भूल के बदले ।
मुझे मंजूर है रोना वफ़ा का रो नही सकता ।
दिवाना हूं दिवानों से हुई है ग़लतियों ‘रकमिश’ ।
मुहब्बत का मसीहा हूं ख़ुदा तो हो नही सकता ।
✍ रकमिश सुल्तानपुरी