खुदा की अनुपम कृति स्त्री
खुदा ने संसार में आकर्षण – विकर्षण का जो जाल रचा उसके पीछे प्रभु की इच्छा जीवन को सरल – सरस एवं जीने योग्य बना देना है यदि जीवन के इतने राग -रंग न होते तो जीवन कितना दूभर होता । बोझिल हो जाता एवं साठ -सत्तर वर्ष तक जीवन जीने की उत्कंठा सिमट कर शून्य पर आ जाती ।
रिश्ता कोई भी हो जीवन में मधुरता को घोल उसे समरस एवं जीने योग्य बनाता है रिश्तों के बीच पनपता प्यार न हो , तो अपनापन विकसित न हो, एक -दूजे के लिए कुछ कर गुजरने की , अपना त्याग देने की , बराबर कदम से कदम मिलाकर चलने की चाह न होती । इसी क्रम मे सृष्टा ने दुनियाँ को रचा और इस दुनियाँ में भी सबसे सुंदर सृष्टि जो की है वह “स्त्री ” ।
प्यार , कर्तव्य , निर्झरिणी सी सौम्य , सरलता की मूर्ति जिसमें मान मर्यादाओं को निभाते हुए कुछ करने की ललक है । नारी के बहुत से रूप है पुत्री ,बहिन , माँ , बुआ , चाची इत्यादि । नारी बंधन में बँधी भी है स्वतंत्र भी है पुरूष से कन्धे से कंधा मिला कर चलने वाली नारी हर क्षेत्र मे अपना परचम लहरा रही है ।
कभी नारी दुहिता के रुप में माता- पिता का आनन्द बढ़ाने वाली , तो भगिनी के रूप में भाई को आत्मसम्बल देने वाली , तो कहीं पति की भार्या बन कर जीवन संग्राम में बराबर से मोर्चा लेने वाली है शक्ति स्वरूपा नारी अहं की सीमा का अतिक्रमण होने पर काली भी बन जाती है ।
लेकिन समाज में नारी के प्रति अपराधों का ग्राफ जिस तीव्रता से बढ़ा है उससे नारी के प्रति पुरुष समाज की कुदृष्टि का पता लगता है । औरत से पैदा मर्द शायद स्त्री को प्रताड़ित करने में अपनी बहादुरी समझता है । शायद किसी दिन का अखबार स्त्री रेप , दहेज , स्त्री को मार दिये जाने की खवर से अछूते हो । कुकृत्य करने के बाद अपराधी कितनी सफाई से बच जाता है सराहनीय है ।
डॉ मधु त्रिवेदी