खीझ
“लिखने-पढ़ने के अलावा तुम्हें और कोई शौक नहीं है क्या?” सरिता ने खीझते हुए आदित्य से कहा । दरअसल सप्ताहांत की छुट्टी में आदित्य घर के जरूरी काम निबटाकर अपनी पुस्तकालय में बैठा था।
“मेरे सारे शौक खत्म हो गए हैं, मेरा एक ही शौक बचा है- ‘लिखना’, अपने समाज और राष्ट्र के लिए लिखना” डायरी में आँखें गढ़ाते हुए आदित्य ने कहा।
सरिता कमरे से बाहर जा चुकी थी।