खीज
खीज
ये कल का छोकरा क्या जाने साहित्य क्या होता है? यह मोबाइल के शक्रीन पर ही उंगली मार सकता है। यह चिंतन-मनन से कोसों दूर है। इधर-उधर से कॉपी कर लेता होगा। इस तरह से वरिष्ठ लेखकों द्वारा नवोदित महेश को नवाजा जा रहा था।
वे नवोदित महेश से कम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने की व नई तकनीक से अनभिग होने की खीज मिटा रहे थे।
-विनोद सिल्ला