खिल गई जैसे कली हो प्यार की
खिल गई जैसे कली हो प्यार की
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आ रही यादें बहुत ही यार की,
खिल गई जैसे कली हो प्यार की।
उड़ गई नींदें शहर सूना लगे,
जम गई दिल पर डली नीहार की।
जल रहा है तन-बदन बेचैन मन,
छोड़ दो शीतल लहर सी धार की।
बुझ गया दीपक,बुझी सी जिंदगी,
क्या रही कीमत दिए उपहार की।
गा रहा गजलें , तराने , गीत मन,
ठीक हो सूरत पिया बीमार की।
यार मनसीरत खड़ा है राह में,
आ चले आओ तलब दीदार की।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)